नमस्कार दोस्तों, इस लेख में हम कुंडली में कितने प्रकार के दोष होते है? के बारे में जानकारी देने जा रहे है. जिसमे आप What are the types of horoscope defects? Kundali dosh kitne prakar ke hote hai? कुंडली दोष के लक्षण क्या है? के बारे में जानेंगे.
अगर आप कुंडली दोष के बारे में जानना चाहते है या फिर कुंडली दोष निवारण बारे में जानकारी जानना चाहते है, तो इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े. निश्चित रूप से यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा.
भारत देश में सदियों से कुंडली को विशेष महत्व दिया जा रहा है, क्योंकि हमारा जन्म ग्रह नक्षत्रों से जुडा होता है. आपने देखा होगा जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो घर के बड़े-बुजुर्ग यह सुनिश्चित करते है कि उसका जन्म कितने बजकर कितने मिनट पर हुआ है.
क्योंकि बच्चे की जन्म कुंडली बनाने के लिए बच्चे का जन्म समय, जन्म तिथि और जन्म स्थान ज्ञात होना अति आवश्यक होता है. जन्म समय, जन्म तिथि और जन्म स्थान की सही जानकारी के बिना किसी भी बच्चे की सही जन्म कुंडली बना पाना किसी के लिए संभव ही नहीं है.
कुंडली दोष कितने प्रकार के होते हैं – Kundali dosh ke prakar
इस लेख में हम जानेंगे कि Kundali dosh kitne prakar ke hote hai और कुंडली में दोष आने पर व्यक्ति को किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
शनि दोष
अगर कुंडली में शनि आ जाये तो इसे बहुत ही अशुभ माना जाता है. शनि दोष होने पर व्यक्ति को समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है. शनि दोष होने पर व्यक्ति को अपयश, नौकरी और व्यापार में नुकसान होता है.
शनि दोष के प्रभाव से घर से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होती हैं, घर में कलह, तेजी से बाल झड़ना, गृह संपत्ति का विनाश, दुर्घटनाओं से पीड़ित होना, बुरी आदतें जैसे जुआ, सट्टा आदि लग जाती है.
मांगलिक दोष
जब कुंडली में लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में यदि मंगल स्थित हो तो कुंडली में मंगल दोष होता है. मंगल दोष आने पर व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
- लग्न भाव – यदि लग्न में यह स्थिति हो तो जातक का स्वभाव बहुत तेज, क्रोधी और अहंकारी होता है.
- चौथे भाव – चौथे भाव में मंगल जीवन में खुशियो की कमी करता है और पारिवारिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों को बढाता है.
- सातवे भाव – सातवे भाव में मंगल की उपस्थिति के कारण वैवाहिक संबंधों में समस्या उत्पन्न होती है.
- आठवे भाव – आठवे भाव में स्थित मंगल विवाह के सुख में कमी लाता है, ससुराल पक्ष में सुख की कमी या ससुराल पक्ष से संबंध खराब हो जाते हैं.
- दसवे भाव – दसवे भाव में मंगल वैवाहिक जीवन में कठिनाई, शारीरिक क्षमता में कमी, कमजोर आयु, रोग, कलह को जन्म देता है.
कालसर्प दोष
कालसर्प दोष राहू और केतु के कारण बनता है. राहू और केतु ग्रहों को किसी भी राशि का सामित्व प्राप्त नही है, फिर भी ये व्यक्ति के जीवन को बहुत ही प्रभावित करते है.
ज्योतिष में राहू और केतु को पापक ग्रह माना जाता है. जब किसी की जन्म कुंडली में सभी ग्रह राहू और केतु के मध्य आते है तब कालसर्प दोष बनता है. कालसर्प दोष का समय पर निवारण न किया जाये तो व्यक्ति को ४२ वर्षो तक संघर्ष करना पड़ता है.
कालसर्प दोष के कारण व्यक्ति को हमेशा गुप्त शत्रुओं से डर बना रहता है. घर में कलह का माहौल होता है. मेहनत करने के बाद भी हर काम में रुकावट आती है और व्यक्ति को सफलता नहीं मिलती. जीवन की समस्याओं के कारण व्यक्ति तनाव में रहने लगता है.
प्रेत दोष
यदि कुंडली के पहले भाव में चन्द्रमा के साथ राहु हो और पंचम और नवम भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो तो जातक भूत-प्रेत, पिशाच या बुरी आत्मावों के प्रभाव में होता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि चंद्रमा की अंतर्दशा राहु की महादशा में हो या राहु छठे, आठवें या बारहवें भाव में चंद्रमा को बुरी तरह प्रभावित कर रहा हो तो यह प्रेत दोष बनता है.
पितृदोष
पितृ दोष तब होता है जब सूर्य, चंद्र, राहु या शनि इनमें से कोई दो एक ही भाव में हों. पितृ दोष के कारण संतान से जुड़ी हर तरह की परेशानी होती है. मान्यता के अनुसार यदि पितरों का अंतिम संस्कार ठीक से न किया जाए तो पितरों का क्रोध बना रहता है, जिसका खामियाजा व्यक्ति को भुगतना पड़ता है.
पितृ दोष होने पर व्यक्ति को जीवन में संतान का सुख नही मिलता और अगर किसी तरह मिल भी जाये तो संतान विकलांग, मंदबुद्धि या फिर चरित्रहीन होती है. या फिर बच्चे का जन्म होते ही मौत हो जाती है.
चाण्डाल दोष
जब राहु और गुरु एक साथ हों तो गुरु चांडाल योग बनता है. यह योग किसी भी व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं होता है. इससे व्यक्ति को जीवन भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
जिस व्यक्ति के कुंडली में यह योग होता है वह निराशावादी और आत्मघाती होता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु चांडाल योग यानि गुरु-राहु की युति हो तो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, चालाक और दरिद्र होता है.
ग्रहण दोष
यह दोष तब बनता है जब सूर्य या चंद्रमा राहु या केतु के साथ युति में हों. ग्रहण दोष के कारण व्यक्ति हमेशा भय में रहता है. इस दोष से पीड़ित व्यक्ति हमेशा अपने काम को अधूरा छोड़ देता है और फिर नए काम के बारे में सोचने लगता है.
यदि किसी की कुंडली में सूर्य ग्रहण योग है तो उसके पिता से मतभेद होते हैं और पिता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. व्यक्ति में सम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है और क्रोध की अधिकता होती है. जिससे व्यक्ति को कई बार सरकारी सजा का सामना करना पड़ सकता है.
इस योग के कारण गृह क्लेश, कार्यक्षेत्र में असफलता, पुत्र, पिता और मामा से मतभेद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस दोष से के कारण व्यक्ति हमेशा समस्याओं से घिरा रहता है.
अमावस्या दोष
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली बनाते समय चंद्रमा पर बहुत ध्यान दिया जाता है. चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. अमावस्या दोष तब बनता है जब सूर्य और चंद्रमा दोनों एक ही भाव में हों.
अमावस्या दोष बहुत ही बुरे योगों में से एक माना जाता है. यदि कुंडली में यह दोष बनता है तो उस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा कमजोर और अप्रभावी रहता है.
अमावस्या दोष के कारण व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसमें व्यक्ति को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिससे व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता है, व्यक्ति की समझने की शक्ति बहुत कमजोर हो जाती है.
केमद्रुम दोष
केमद्रुम दोष चन्द्रमा से सम्बंधित होता है. कुंडली में चन्द्रमा किसी भी भाव में अकेला बैठा हो और उसके आगे और पीछे किसी भी भाव में कोई ग्रह ना हो तो ऐसे में केमद्रुम दोष बनता है.
इस दोष में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मानसिक रोग, अज्ञात भय, जीवन में उतार-चढाव, आर्थिक कमजोरी, आर्थिक संकट जैसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
ऐसे व्यक्ति बहुत ही चिडचिडे और सक्की स्वभाव के होते है. यह खुद को बहुत ही बुद्धिमान समजते है, लेकिन होते नही. परन्तु यह व्यक्ति दीर्घायु वाले होते है.
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